धर्मनगरियों में जमीनी घोटाले खूब सामने आ रहे हैं। चित्रकूट हो या मैहर हर जगह जमीनों की खरीदी बिक्री में धांधली की शिकायतें गाहे-बगाहे आती हैं जिनकी जिला प्रशासन लगातार जांच भी कराता है। जमीनों के इसी गोरखधंधे के बीच मैहर के बहुचर्चित जमीनी मामले की जांच भी शुरू हो गई है। कभी मां शारदा सहकारी गृह निर्माण समिति के आधिपत्य में बताई जाने वाली आराजी नंबर 5/3/1ख की जांच के लिए एसडीएम ने तहसीलदार के नेतृत्व में पांच सदस्यीय जांच टीम गठित की है। माना जा रहा है कि यदि शिकायतकर्ता पीएम इंतोडिया के आरोप प्रमाणित हुए तो कूटरचित दस्तावेजों के जरिए तैनात कई कर्मचारियों की गर्दन नप सकती है।
जमीन की दोबारा बिक्री करने के आरोपों से
जुझ रहे मनोज रजक के अलावा उस दौरान
एक बड़ा सवाल यह है कि आवासहीन कर्मचारियों के लिए आवंटित भूखंड जब शारदा सहकारी गृह निर्माण समिति के थे तो उनकी खरीदी-बिक्री कैसे हो गई ? बताया जाता है कि यह गड़बड़झाला मनोज रजक के वर्ष 2005-06 में समिति अध्यक्ष बनने के बाद शुरू हुआ। पहले कंस्ट्रक्शन कंपनी पराग इंडस की एंट्री मनोज के जरिए हुई और फिर कालोनी बसाने का खेल शुरू हुआ जब कालोनी फेल हुई तो मनोज ने भूखंड नरेश केला को बेच दिया। उन्होंने भी कालोनी विकसित की। इस मामले ने कई सवाल खड़े कर दिए। हैं। मसलन समिति के अध्यक्ष ने आखिर पहले से बिके प्लाट की एक बार फिर से रजिस्ट्री किस आधार पर करा दी ? जब समिति का गठन सिर्फ भूमिहीनों को ही आवासीय प्लाट उपलब्ध कराने के लिए किया गया था, तब इन नियमों का उल्लंघन करने की मजबूरी क्या थी? दोबारा प्लाट की रजिस्ट्री कराते समय विधि अनुसार आवश्यक तथ्य क्यों छिपाए गए, मसलन रजिस्ट्री में इस तथ्य का उल्लेख क्यों नहीं किया गया कि भूमि कृषि योग्य है, आवासीय या व्यावसायिक है या फिर प्लाट है? सबसे बड़ा सवाल यह है कि दोबारा रजिस्ट्री या नामांतरण के दौरान तत्कालीन पटवारी, आरआई समेत राजस्व के अधिकारी कर्मचारी क्या कर रहे थे और मूकदर्शक क्यों बने हुए थे? मनोज रजक द्वारा कराई गई रजिस्ट्री में प्लाट को बस्ती से दूर भी बताया गया, जबकि स्वीकृत नक्शे से स्पष्ट है कि विक्रित प्लाट से आवासीय बस्ती लगी हुई है। इन सवालों के जवाब तो अब एसडीएम धर्मेंद्र मिश्रा द्वारा गठित जांच टीम की जांच पूरी होने के बाद ही मिलेंगे लेकिन इस मामले को लेकर प्रशासनिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है।
क्या है मामला
मैहर के बहुचर्चित जमीनी मामले की जांच शुरू, एसडीएम ने गठित की 5 सदस्यीय जांच टीम
गड़बड़झाले का जिम्मेदार कौन?
दरअसल तकरीबन दो दशक पूर्व आवासहीन कर्मचारियों को आवास मुहैया कराने के उद्देश्य से शारदा सहकारी गृह निर्माण समिति का गठन किया गया था। बताया जाता है कि वर्ष 1998 में तत्कालीन समिति अध्यक्ष मनमोहन शर्मा ने पहल कर नागरिक सुविधाओं से लैस सुसज्जित कालोनी का खाका तैयार किया और तकरीबन लगभग साढ़े। 5 एकड़ में 117 प्लाटों ( 2,385 हेक्टेयर) की कालोनी बनाने की योजना तैयार की गईं। इसके लिए जमीन भी हासिल हो गई और कई प्लाट भी काट लिए गए। नगर ग्राम निवेश ने समिति को कालोनी निर्माण की स्वीकृति दे दी थी। वर्ष 1991 में डायवर्सन और 1992 में इसे कालोनाइजर का लाइसेंस मिला था। लिहाजा समिति द्वारा मैहर के उमरी पेला में साढ़े 9 एकड़ पर प्लाटिंग की गई। हालंकि भूमिहीनों को नो प्रॉफिट नो लॉस पर आवासीय प्लाट उपलब्ध कराने के दावे के साथ 1998 में सामने आई मां शारदा सहकारी गृह निर्माण समिति कालोनी को आकार नहीं दे सकी। मैहर सीमेंट के सेल्स एंड परचेज के हेड रह चुके पीएम इंटोडिया इस मामले के शिकायतकर्ता हैं जिनका आरोप है कि इन्हीं प्लाटों में से एक प्लाट नंबर-36 (आराजी नंबर-5/3/1ख) उनका है जिसकी वे पूर्व में रजिस्ट्री करा चुके हैं। ऐसे में उनकी जानकारी के बिना उनका प्लाट कैसे बेचा जा सकता है ? उधर नरेश कैला का कहना है कि आरोप बेबुनियाद हैं और उन्नकी खरीदी जमीन में शिकायतकर्ता की आराजी नहीं है। शिकायतकर्ता की यदि जमीन है तो वे नाप करा लें।
शिकायत कर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच कराई जा रही है। इसके लिए तहसीलदार के नेतृत्व में टीम गठित की गई है। रिपोर्ट
आने के बाद नियम परक
कार्रवाई की जाएगी।
धर्मेंद्र मिश्रा, एसडीएम मैहर
उच्चाधिकारियों ने टीम गठित कर जांच का
जिम्मा दिया है । हम पत्र व अन्य दस्तावेजों का अवलोकन कर रहे हैं। उम्मीद है कि जांच टीम जल्द ही मामले को सुलझाकर असलियत तक
पहुंच जाएगी।
मानवेंद्र सिंह, तहसीलदार मैहर
धर्मनगरियों में जमीनी घोटाले खूब सामने आ रहे हैं-आंचलिक ख़बरें-मनीष गर्ग

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