श्री गुरु रविदास जी महान संत बस नही बल्कि एक कवि, समाज सुधारक और दर्शनशास्त्री भी थे. – धर्मेश घई
मैहर रविदास जयंती आज देशभर में हर्षोल्लास से मनाई गई वहीं मैहर मैं श्री जगत गुरु रविदास आश्रम आरकंडी वार्ड क्रमांक एक में रविदास आश्रम में हर्षोल्लास के साथ जयंती मनाई गई इस अवसर पर आयोजन अत्रि मुनि प्रबंधक एवं कार्यक्रम के आयोजक संत रामपाल जी महाराज गुरु गद्दी आसीन एवं अध्यक्ष संत शिरोमणि सतगुरु रविदास सेवा समिति आरकांडी वार्ड क्रमांक 1 मैहर द्वारा आयोजन किया गया इस आयोजन में सम्मिलित होने मैहर के वरिष्ठ कांग्रेस नेता पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष धर्मेश घई एवं कार्यवाहक अध्यक्ष ब्लॉक कांग्रेस कमेटी मैहर चंद्रकांत चौरसिया राजा कार्यक्रम में सम्मिलित होने पहुंचे संत रविदास आश्रम में आज प्रातः से ही जोर शोर से तैयारी जारी रही जिसमें मुख्य रुप से प्रभातफेरी सुबह 5:00 बजे अखंड पाठ सुबह 6:00 बजे अखंड पाठ भोग सुबह 10:00 बजे शब्द कीर्तन सुबह 10:30 बजे से प्रारंभ किया गया एवं सत्संग दोपहर 2:00 से 3:00 तक आयोजित किया गया जिसमें काफी मात्रा में श्रद्धालु श्रोता भक्त मौजूद रहे आरती अरदास शाम 6:00 बजे से लेकर 7:00 बजे तक आयोजित की गई इस कार्यक्रम में पहुंचे नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश घई ने श्री गुरु संत रविदास जी के जीवन परिचय में विस्तार पूर्वक जानकारी उपलब्ध कराई जिसमें उन्होंने कहा कि
संत रविदास जी को मीरा बाई का आध्यात्मिक गुरु माना जाता है.
देश में संत रविदास का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है. भारतीय भक्ति आंदोलन के अगुआ संतों में उनकी गिनती होती है. उत्तर भारत में उन्होंने समाज में सम भाव फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई. वे न केवल एक महान संत थे, बल्कि एक कवि, समाज सुधारक और दर्शनशास्त्री भी थे. निर्गुण धारा के संत रविदास की ईश्वर में अटूट श्रद्धा थी. समाज में भाईचारा और बराबरी का संदेश प्रसारित करने में उनका बड़ा योगदान रहा. जाति को लेकर बनी रुढ़ीवादिता पर उन्होंने कड़ा प्रहार किया और समाज में बराबरी का भाव फैलाया. अपनी रचनाओं के जरिये उन्होंने आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिया है.
संत रविदास का जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में माता कालसा देवी और बाबा संतोख दासजी के यहां हुआ था. हालांकि उनके जन्म की तारीख को लेकर कुछ विवाद हैं, लेकिन माघी पूर्णिमा के दिन उनका जन्म माना जाता है. संत रविदास का पूरा जीवन काल 15वीं से 16वीं शताब्दी के बीच (1450 से 1520 तक) माना जाता है
संत रविदास के पिता मल साम्राज्य के राजा नगर के सरपंच थे और चर्मकार समाज से थे. वे जूते बनाने और उसकी मरम्मत का कार्य करते थे. शुरुआती दिनों में रविदास भी उनके काम में हाथ बंटाते थे. रविदास को बचपन से ही सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा और उन्होंने काफी संघर्ष झेला. हालांकि वे बचपन से ही बहुत बहादुर थे और ईश्वर के बड़े भक्त थे. उन्होंने भले ही काफी भेदभाव झेला, लेकिन हमेशा दूसरों को प्रेम का पाठ पढ़ाया.
इस अवसर पर चंद्रकांत चौरसिया राजा ने कहा कि
संत रविदासजी भगवान राम के विभिन्न स्वरुप राम, रघुनाथ, राजा रामचन्द्र, कृष्ण, गोविंद आदि नामों की भक्ति करते हुए अपनी भावनाओं को कलमबद्ध किया और समाज में बराबरी के भाव का प्रसार किया. बचपन में अपने दोस्त को जीवन देने, पानी पर पत्थर तैराने, कुष्ठरोगियों को ठीक करने समेत उनके चमत्कार के कई किस्से प्रचलित हैं. ये सब उनकी भक्ति और सेवाभाव का ही प्रतिफल था कि वे धर्म और जाति के बंधनों को तोड़ते हुए सभी वर्ग के प्रिय संत बनें.