छपरा शहर से सटे प्रखंड के रौजा स्थित ब्रह्म विद्यालय सह आश्रम में मकर संक्रांति पर संतो और श्रद्धालुओं का बड़ी संख्या में जुटान हुआ।इस अवसर पर यूपी, एमपी, झारखण्ड,बंगाल तथा बिहार के कई जिले से आये आश्रम के स्वामी महात्मा एवम स्रधालुओं ने इस अवसर पर चुरा- दही के भंडारे का प्रसाद ग्रहण किया। मकर संक्रांति पर बोलते हुए स्वामी सत्यानंद जी महाराज ने कहा कि आज के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू होती है इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है I इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। गुरू की महत्ता पर कहा कि सदैव से गुरु कि कृपा से ही लोगों को सत्य का मार्ग मिला है I यह पुरातन काल से वर्तमान काल तक का सत्य है I शाश्वत सत्य और निर्मूलअसत्य के बीच एक गुरु होता है जो व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा के बीच के अंतर को मिटाकर ईश्वर की मौजूदगी का आत्मसात कराता है I आश्रम के स्थापक गुरू रहे अद्वैतानंद जी महाराज के संबंध में बोलते हुये कहा कि परमहंस दयाल के जीवन का कार्य और दर्शन सम्यकमूलक था । उनका जीवन दर्शन कबीर का निर्गुणवाद, तुलसीदास जी के सर्वगुणवाद और सूफी संतो के फकीरीवाद के रहस्य का एक साथ बोध कराता है । उन्होने अपना कर्म क्षेत्र पाकिस्तान के टेरी को चूना था जहा पश्चिम में इस्लाम तो पूर्व में हिन्दू संस्कृति का प्रभाव था । उनका दर्शन इस तरह का था कि वे सभी संस्कृतियों के लिये सर्वमान्य बन गये ।
भंडारे में करीब तीन हजार से अधिक लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। भंडारे में स्वामी संतों के साथ काफी संख्या में श्रद्धालुओं का भी जुटान हुआ I श्रद्धालुओ में महिलाओं की संख्या भी काफी रही। आश्रम में पहुंची महिलाएं सेवा भाव से जूठे वर्तन को साफ करने तथा भंडारे की वस्तुओं को तैयार करने में तल्लीनता से जुटी दिखी। बता दें कि संस्थापक गुरु श्री स्वामी आद्वेतानन्द जी महाराज का जन्म छपरा के सरयू नदी किनारे दहियावां में हुआ था। इसको लेकर इस आश्रम से जुड़े स्वामी और श्राधालुओं में छपरा को लेकर विशेष आकर्षण रहता हैI हालांकि बाद में स्वामी जी देश का भ्रमण करते हुए पाकिस्तान के टारी चले गए थे जहा आज भी उनकी समाधी है।